04 August, 2011

कोई मजबूरी तो नहीं


मेरी  मोहब्बत  है  वो , कोई  मजबूरी  तो नहीं 
वो  मुझे  चाहे , या  मिल  जाये  ज़रूरी  तो  नहीं ,

यह  क्या  कुछ  कम  है  के  बसा  है  मेरी  साँसों  में 
अब  वो  सामने  हो  मेरी  आँखों  के  ज़रूरी  तो  नहीं ,

जान  कुर्बान  मेरी ,उस  की  हर  मुस्कराहट  पर 
चाहत  का  तकाज़ा  है  यही , अकाल -ऐ -ख़ुरोरी  तो  नहीं ,

अब  तू  निकल  के  आँखों  से , यादों  मैं  जा  बसा 
यही  है  कुर्बत -ऐ -चाहत , कोई  दूरी  तो  नहीं ,

उस  के  घर  की  तरफ  उठते  ही  रुक  जाते  हैं  कदम 
बदनामी  से  उस  की  डरता  हूँ , कोई  मजबूरी  तो  नहीं. 

No comments:

Post a Comment