07 July, 2011

रात फैली है

रात फैली है तेरे ‘सुरमई’ आँचल की तरह,
'चाँद' निकला है तुझे ढूँढने ‘पागल’ की तरह,
’ख़ुश्क' पत्तों की तरह लोग ‘उड़े’ जाते हैं,
शहर भी अब नज़र आने लगा ‘जंगल’ की तरह,
फिर ‘ख़यालों' में तेरे ‘क़ुर्ब' की ख़ुशबू जागी

फिर ‘बरसने’ लगी आँखें मेरी ‘बादल' की तरह
’बे-वफाओं’ से ‘वफ़ा’ करते गुज़री है ‘हयात’
ये ‘बरसता’ रहा ‘वीराने’ पे ‘हलचल’ की तरह.........!!

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