07 July, 2011

कर सके तो ...

कर सके तो उसे मेरी तनहाइयों कि ‘ख़बर’ कर दे
या मुझे उसकी हर याद से ‘बेख़बर’ कर दे
सारे ज़माने कि ‘रुसवाई’ मंज़ूर है मुझे
बस तू उसे मेरा ‘अहले-हमसफ़र’ कर दे
हर ख्वाब उसके बिना ‘अधूरा’ है अब
...फिर मुझ पे उसकी ‘खूबसूरती’ नज़र कर दे
‘उसके’ सिवा कुछ ना मांगा है मैंने कभी
ऐ ख़ुदा मेरी दुवाओं में ‘असर’ कर दे
चाहे और ‘मुश्किल’ इश्क़ कि ‘रहगुज़र’ कर दे
यूँ लम्बी जुदाई से इश्क़ का ‘इम्तिहाँ’ ना ले
एक पल कि ‘मुलाक़ात’ हो और ज़िंदगी ‘फ़ना’ कर दे …….

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