14 April, 2011

मेरी चाहत था वो...



मेरी  चाहत  था  वो  मेरी  आन  भी  था 
मेरे  खामोश  लहजों  की  वो  सदा  भी  था 

रहता  था  सुबह -ओ -शाम  वो  मेरे  वजूद  मे
मेरी  आवाज़  मेरा  लहजा  वो  मेरी  अदा  भी  था 

देता  था  मुझ  को  ज़ख्म  वो  बे -हिस्साब  मगर 
हमदर्द  भी  था  मेरा  वो  मेरी  वफ़ा भी  था 

अब  उस  के  ज़िक्र  पर  मैं  अक्सर  खामोश  रहता  हूँ 
कभी  मेरी  मोहब्बत  की  वो  इन्तहा  भी  था 

अजब  कशमकश  थी  मेरी  जिंदगी  मैं 
पुजना  उसे   भी  था  और  दिल  मे  खुदा  भी  था...  

1 comment:

  1. रिश्ते अब पुराने हो गए, उनसे मिले जमाने हो गए
    तब मिलते थे किसी बहाने, अब ना मिलने के बहाने हो गए

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