किया इरादा बारम्बार तुझे भुलाने का,
मिला ना बहाना ही कोई मगर ठिकाने का।
तेरे सिवा था किसे हक़ मुझे जगाने का।
ये आँख है, कि नही देखा कुछ सिवा तेरे
ये दिल अजब है, कि गम है इसे ज़माने का।
वो देख लो, वो समंदर खुश्क होने लगा,
जिसे था दावा, मेरी प्यास को बुझाने का।
जमी पे किस लिए जंजीर हो गये साऐ,
मुझे पता है, मगर मैं नही बताने का ।
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