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13 March, 2012

तेरे होने का मज़ा और है

वो नज़र कहाँ से लाउ जो तुम्हे भुला दे,
वो दावा कहा से  लाउ जो इस दर्द को मिटा दे,
मिलना तो लिखा होता है तकदीरों में पर,
वो तकदीर ही कहाँ से लाउ जो हम दोनों को मिला दे ...

मंजिल भी खो चुके हमसफर भी नहीं रहा,
मेरी किसी भी दुआ मैं शायद असर ही नही रहा,
जब से हुयी है दिल को खबर वो बिछड़ रहा है मुझसे,
लफ्ज़ों को जोडने का तबसे हुनर भी नही रहा ...

पाने से खोने का मज़ा और है..
बंद आँखों मैं रोने का मज़ा और है..
आंसू बने लफ्ज़ और लफ्ज़ बने शायरी..
और उस शायरी में तेरे होने का मज़ा और है..

दुनिया में किसी से कभी प्यार मत करना,
अपने अनमोल आंसू इस तरह बेकार मत करना,
कांटे तो फिर भी दमन थाम लेते हैं,
फूलों पे इस तरह कभी ऐतेबार मत करना.. 

उन्होंने देखा और आंसू गिर पड़े,
भरी बरसात में जैसे फूल बिखर पड़े,
दुःख यह नहीं के उन्होंने हमे अलविदा कहा,
दुःख तो यह हैं की उसके बाद वो खुद रो पड़े.





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