मेरी मोहब्बत है वो , कोई मजबूरी तो नहीं
वो मुझे चाहे , या मिल जाये ज़रूरी तो नहीं ,
यह क्या कुछ कम है के बसा है मेरी साँसों में
अब वो सामने हो मेरी आँखों के ज़रूरी तो नहीं ,
जान कुर्बान मेरी ,उस की हर मुस्कराहट पर
चाहत का तकाज़ा है यही , अकाल -ऐ -ख़ुरोरी तो नहीं ,
अब तू निकल के आँखों से , यादों मैं जा बसा
यही है कुर्बत -ऐ -चाहत , कोई दूरी तो नहीं ,
उस के घर की तरफ उठते ही रुक जाते हैं कदम
बदनामी से उस की डरता हूँ , कोई मजबूरी तो नहीं.
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